Wednesday, March 3, 2010

रविवार की आरती

कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।। टेक
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।

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