सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया ।। टेक
पान सुपारी ध्वजा नारियल, लेतेरी भेंट चढ़ाया ।। सुन 0
सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केसर तिलक लगाया ।। सुन 0
नंगे पग अकबर आया, सोने का छत्र चढ़ाया ।। सुन 0
ऊंचे पर्वत भयो देवालय, नीचे शहर बसाया ।। सुन 0
सतयुग, त्रेता द्घापर मध्ये, कलियुग राज सवाया ।। सुन 0
धूप दीप नैवेघ आरती, मोहन भोग लगाया ।। सुन 0
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावै, मनवांछित फल पावैं ।। सुन 0
Wednesday, March 3, 2010
आरती श्री विन्ध्येश्वरी देवी की
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