Wednesday, March 3, 2010

आरती श्री कृष्ण जी की

ओडम् जय श्रीकृष्ण हरे, प्रभु जय श्रीकृष्ण हरे ।
भक्तजनन के दुक सारे पल में दूर करे ।
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी ।
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी ।
कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ।
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे ।
गज के फन्द छुड़ाए भवसागर तारे ।
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे ।
पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे ।
केशी कंस विदारे नल कूबर तारे ।
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे ।
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे ।
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे ।
राज्य उग्रसेन पायो माता शोक हरे ।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे ।
ओडम् जय श्रीकृष्ण हरे ।
आरती (2)
आरती युगल किशोर की कीजै ।
आरती युगल किशोर की कीजै । राधे तन मन धन न्यौछावर कीजै ।।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा । ताहि निरख मेरो मन लोभा ।।
गौर श्याम मुख निरखत रीझै । प्रभु को रुप नय भर पीजै ।।
कंचन थार कपूर की बाती । हरि आए निर्मल भई छाती ।।
फूलन की सेज फूलन की माला । रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला ।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहे । कुंज बिहारी गिरिवर धारी ।।
श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी । आरति करत सकल ब्रज नारी ।।
नंदनंदन वृषभानु किशोरी । परमानन्द स्वामि अविचल जोरी ।।

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