आरती करुं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो ।
हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा,
रावन का मन कैसे फेरा, वर मांगत बन गया सवेरा,
यह सब कृपा तिहारी हो, उपकारी हो मातु हमारी हो ।
तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम अम्बुजन विकास करती हो,
मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचाल करती हो,
विघा देने वाली, वीणा धारी हो, मातु हमारी हो ।
तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक विष्णु भये जग के पालक,
अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण, भये शम्भु संसार ही घालक,
बन्दौं आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी हो ।
सदबुद्घि विघा बल मोहि दीजै, तुम अज्ञान हटा रख लीजै,
जन्मभूमि हित अर्पण कीजे, कर्मवीर भस्महिं कर दीजै,
ऐसी विनय हमारी, भवभय हारी हो, मातु हमारी हो ।।
Wednesday, March 3, 2010
आरती श्री सरस्वती जी की
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