जय सन्तोषी माता, जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख सम्पति दाता॥ जय ..
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके तन सिंगार लीन्हों॥ जय ..
गेरु लाल जटा छवि बदन कमल सोहे।
मन्द हसत करुणामयी त्रिभुवन मन मोहै॥ जय ..
स्वर्ण सिंहासन बैठी चँवर ढुरे प्यारे।
धूप दीप मधु मेवा, भोग धरे न्यारे॥ जय ..
गुड़ और चना परम प्रिय तामे संतोष कियो।
सन्तोषी कहलाई भक्तन विभव दियो॥ जय ..
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई कथा सुनत मोही॥ जय ..
मन्दिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।
विनय करे हम बालक चरनन सिर नाई॥ जय ..
भक्ति भाव मय पूजा अंगी कृत कीजै।
जो मन बनै हमारे इच्छा फल दीजै॥ जय ..
दु:खी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये।
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥ जय ..
ध्यान धरो जाने तेरौ मनवांछित फल पायौ।
पूजा कथा श्रवण कर उर आनन्द आयौ॥ जय ..
शरण गहे की लज्जा राख्यो जगदम्बे।
संकट तूही निवारे, दयामयी अम्बे॥ जय ..
संतोषी माँ की आरती जो कोई जन गावै।
ऋषि सिद्धि सुख संपत्ति जी भर के पावै॥ जय
Wednesday, March 3, 2010
आरती संतोषी माता की
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