जय जय आरती वेणु गोपाला
वेणु गोपाला वेणु लोला
पाप विदुरा नवनीत चोरा
जय जय
जय जय आरती वेंकटरमणा
वेंकटरमणा संकटहरणा
सीता राम राधे श्याम
जय जय
जय जय आरती गौरी मनोहर
गौरी मनोहर भवानी शंकर
साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर
जय जय
जय जय आरती राज राजेश्वरि
राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि
महा सरस्वती महा लक्ष्मी
महा काली महा लक्ष्मी
जय जय आरती आन्जनेय
आन्जनेय हनुमन्ता
जय जय आरति दत्तात्रेय
दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार
जय जय आरती सिद्धि विनायक
सिद्धि विनायक श्री गणेश
जय जय आरती सुब्रह्मण्य
सुब्रह्मण्य कार्तिकेय
Wednesday, March 3, 2010
आरती वेणु गोपाला
आरती साईँ बाबा
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा .
चरणों के तेरे हम पुजारी साईँ बाबा ..
विद्या बल बुद्धि, बन्धु माता पिता हो
तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो
हे जगदाता अवतारे, साईँ बाबा .
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ..
ब्रह्म के सगुण अवतार तुम स्वामी
ज्ञानी दयावान प्रभु अंतरयामी
सुन लो विनती हमारी साईँ बाबा .
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ..
आदि हो अनंत त्रिगुणात्मक मूर्ति
सिंधु करुणा के हो उद्धारक मूर्ति
शिरडी के संत चमत्कारी साईँ बाबा .
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ..
भक्तों की खातिर, जनम लिये तुम
प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम दिये तुम
दुखिया जनों के हितकारी साईँ बाबा .
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ..
आरती कुँज बिहारी की
आरती कुँज बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गले में वैजन्ती माला, माला
बजावे मुरली मधुर बाला, बाला
श्रवण में कुण्डल झलकाला, झलकाला
नन्द के नन्द,
श्री आनन्द कन्द,
मोहन बॄज चन्द
राधिका रमण बिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
गगन सम अंग कान्ति काली, काली
राधिका चमक रही आली, आली
लसन में ठाड़े वनमाली, वनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक
ललित छवि श्यामा प्यारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
जहाँ से प्रगट भयी गंगा, गंगा
कलुष कलि हारिणि श्री गंगा, गंगा
स्मरण से होत मोह भंगा, भंगा
बसी शिव शीश,
जटा के बीच,
हरे अघ कीच
चरण छवि श्री बनवारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, बिलसै
देवता दरसन को तरसै, तरसै
गगन सों सुमन राशि बरसै, बरसै
अजेमुरचन
मधुर मृदंग
मालिनि संग
अतुल रति गोप कुमारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
चमकती उज्ज्वल तट रेणु, रेणु
बज रही बृन्दावन वेणु, वेणु
चहुँ दिसि गोपि काल धेनु, धेनु
कसक मृद मंग,
चाँदनि चन्द,
खटक भव भन्ज
टेर सुन दीन भिखारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ..
आरती संतोषी माता की
जय सन्तोषी माता, जय सन्तोषी माता।
अपने सेवक जन को, सुख सम्पति दाता॥ जय ..
सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हों।
हीरा पन्ना दमके तन सिंगार लीन्हों॥ जय ..
गेरु लाल जटा छवि बदन कमल सोहे।
मन्द हसत करुणामयी त्रिभुवन मन मोहै॥ जय ..
स्वर्ण सिंहासन बैठी चँवर ढुरे प्यारे।
धूप दीप मधु मेवा, भोग धरे न्यारे॥ जय ..
गुड़ और चना परम प्रिय तामे संतोष कियो।
सन्तोषी कहलाई भक्तन विभव दियो॥ जय ..
शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही।
भक्त मण्डली छाई कथा सुनत मोही॥ जय ..
मन्दिर जगमग ज्योति मंगल ध्वनि छाई।
विनय करे हम बालक चरनन सिर नाई॥ जय ..
भक्ति भाव मय पूजा अंगी कृत कीजै।
जो मन बनै हमारे इच्छा फल दीजै॥ जय ..
दु:खी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये।
बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥ जय ..
ध्यान धरो जाने तेरौ मनवांछित फल पायौ।
पूजा कथा श्रवण कर उर आनन्द आयौ॥ जय ..
शरण गहे की लज्जा राख्यो जगदम्बे।
संकट तूही निवारे, दयामयी अम्बे॥ जय ..
संतोषी माँ की आरती जो कोई जन गावै।
ऋषि सिद्धि सुख संपत्ति जी भर के पावै॥ जय
आरती वृहस्पति देवता की
जय वृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा । छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी । जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता । सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े । प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी । पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो । विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ।।
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे । जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ।।
सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ।
बुधवार की आरती
आरती युगलकिशोर की कीजै । तन मन धन न्यौछावर कीजै ।।
गौरश्याम मुख निरखत रीजै । हरि का स्वरुप नयन भरि पीजै ।।
रवि शशि कोट बदन की शोभा । ताहि निरखि मेरो मन लोभा ।।
ओढ़े नील पीत पट सारी । कुंजबिहारी गिरवरधारी ।।
फूलन की सेज फूलन की माला । रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला ।।
कंचनथार कपूर की बाती । हरि आए निर्मल भई छाती ।।
श्री पुरुषोत्तम गिरिवरधारी । आरती करें सकल ब्रज नारी ।।
नन्दनन्दन बृजभान, किशोरी । परमानन्द स्वामी अविचल जोरी ।।
मंगलवार के व्रत की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपै । रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर सब मारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे । लाय संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर संहारे । दाईं भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारें । जय जय जय हनुमान उचारें ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।
लंक विध्वंस किए रघुराई । तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।।
सोमवार की आरती
जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अद्र्धागी धारा॥ \हर हर हर महादेव॥
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै।
हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजै॥ \हर हर ..
दो भुज चारु चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे।
तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ \हर हर ..
अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी। \हर हर ..
श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, गरुड़ादिक, भूतादिक संगे॥ \हर हर ..
कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी।
सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ \हर हर ..
ब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। \हर हर ..
त्रिगुणस्वामिकी आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावै॥ \हर हर ..
2. हर हर हर महादेव।
सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अन्तर्यामी॥ हर हर .
आदि, अनन्त, अनामय, अकल कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर..
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी॥ हरहर ..
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी॥ हरहर ..
मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हरहर ..
छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।
चिताभस्मतन, त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हरहर ..
प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी॥ हरहर ..
शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी॥ हरहर ..
निर्गुण, सगुण, निर†जन, जगमय, नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हरहर ..
सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हरहर ..
हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हरहर ..
(3) शीश गंग अर्धग पार्वती सदा विराजत कैलासी।
नंदी भृंगी नृत्य करत हैं, धरत ध्यान सुखरासी॥
शीतल मन्द सुगन्ध पवन बह बैठे हैं शिव अविनाशी।
करत गान-गन्धर्व सप्त स्वर राग रागिनी मधुरासी॥
यक्ष-रक्ष-भैरव जहँ डोलत, बोलत हैं वनके वासी।
कोयल शब्द सुनावत सुन्दर, भ्रमर करत हैं गुंजा-सी॥
कल्पद्रुम अरु पारिजात तरु लाग रहे हैं लक्षासी।
कामधेनु कोटिन जहँ डोलत करत दुग्ध की वर्षा-सी॥
सूर्यकान्त सम पर्वत शोभित, चन्द्रकान्त सम हिमराशी।
नित्य छहों ऋतु रहत सुशोभित सेवत सदा प्रकृति दासी॥
ऋषि मुनि देव दनुज नित सेवत, गान करत श्रुति गुणराशी।
ब्रह्मा, विष्णु निहारत निसिदिन कछु शिव हमकू फरमासी॥
ऋद्धि सिद्ध के दाता शंकर नित सत् चित् आनन्दराशी।
जिनके सुमिरत ही कट जाती कठिन काल यमकी फांसी॥
त्रिशूलधरजी का नाम निरन्तर प्रेम सहित जो नरगासी।
दूर होय विपदा उस नर की जन्म-जन्म शिवपद पासी॥
कैलाशी काशी के वासी अविनाशी मेरी सुध लीजो।
सेवक जान सदा चरनन को अपनी जान कृपा कीजो॥
तुम तो प्रभुजी सदा दयामय अवगुण मेरे सब ढकियो।
सब अपराध क्षमाकर शंकर किंकर की विनती सुनियो॥
(4) अभयदान दीजै दयालु प्रभु, सकल सृष्टि के हितकारी।
भोलेनाथ भक्त-दु:खगंजन, भवभंजन शुभ सुखकारी॥
दीनदयालु कृपालु कालरिपु, अलखनिरंजन शिव योगी।
मंगल रूप अनूप छबीले, अखिल भुवन के तुम भोगी॥
वाम अंग अति रंगरस-भीने, उमा वदन की छवि न्यारी। भोलेनाथ
असुर निकंदन, सब दु:खभंजन, वेद बखाने जग जाने।
रुण्डमाल, गल व्याल, भाल-शशि, नीलकण्ठ शोभा साने॥
गंगाधर, त्रिसूलधर, विषधर, बाघम्बर, गिरिचारी। भोलेनाथ ..
यह भवसागर अति अगाध है पार उतर कैसे बूझे।
ग्राह मगर बहु कच्छप छाये, मार्ग कहो कैसे सूझे॥
नाम तुम्हारा नौका निर्मल, तुम केवट शिव अधिकारी। भोलेनाथ ..
मैं जानूँ तुम सद्गुणसागर, अवगुण मेरे सब हरियो।
किंकर की विनती सुन स्वामी, सब अपराध क्षमा करियो॥
तुम तो सकल विश्व के स्वामी, मैं हूं प्राणी संसारी। भोलेनाथ ..
काम, क्रोध, लोभ अति दारुण इनसे मेरो वश नाहीं।
द्रोह, मोह, मद संग न छोड़ै आन देत नहिं तुम तांई॥
क्षुधा-तृषा नित लगी रहत है, बढ़ी विषय तृष्णा भारी। भोलेनाथ ..
तुम ही शिवजी कर्ता-हर्ता, तुम ही जग के रखवारे।
तुम ही गगन मगन पुनि पृथ्वी पर्वतपुत्री प्यारे॥
तुम ही पवन हुताशन शिवजी, तुम ही रवि-शशि तमहारी। भोलेनाथ
पशुपति अजर, अमर, अमरेश्वर योगेश्वर शिव गोस्वामी।
वृषभारूढ़, गूढ़ गुरु गिरिपति, गिरिजावल्लभ निष्कामी।
सुषमासागर रूप उजागर, गावत हैं सब नरनारी। भोलेनाथ ..
महादेव देवों के अधिपति, फणिपति-भूषण अति साजै।
दीप्त ललाट लाल दोउ लोचन, आनत ही दु:ख भाजै।
परम प्रसिद्ध, पुनीत, पुरातन, महिमा त्रिभुवन-विस्तारी। भोलेनाथ ..
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शेष मुनि नारद आदि करत सेवा।
सबकी इच्छा पूरन करते, नाथ सनातन हर देवा॥
भक्ति, मुक्ति के दाता शंकर, नित्य-निरंतर सुखकारी। भोलेनाथ ..
महिमा इष्ट महेश्वर को जो सीखे, सुने, नित्य गावै।
अष्टसिद्धि-नवनिधि-सुख-सम्पत्ति स्वामीभक्ति मुक्ति पावै॥
श्रीअहिभूषण प्रसन्न होकर कृपा कीजिये त्रिपुरारी। भोलेनाथ .
रविवार की आरती
कहुँ लगि आरती दास करेंगे, सकल जगत जाकि जोति विराजे ।। टेक
सात समुद्र जाके चरण बसे, कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम ।
कोटि भानु जाके नख की शोभा, कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम ।
भार उठारह रोमावलि जाके, कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम ।
छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे, कहा भयो नैवेघ धरे हो राम ।
अमित कोटि जाके बाजा बाजे, कहा भयो झनकार करे हो राम ।
चार वेद जाके मुख की शोभा, कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम ।
शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक, नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम ।
हिम मंदार जाको पवन झकेरिं, कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम ।
लख चौरासी बन्दे छुड़ाये, केवल हरियश नामदेव गाये ।। हो रामा ।
आरती गायत्री जी की
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।
आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री ।
दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह दारिद्रय दैन्य हर्त्री ।।
ब्रहृ रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे ।
भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे ।।
भयहारिणि भव तारिणि अनघे, अज आनन्द रराशी ।
अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ।।
कामधेनु सत् चित् आनन्दा, जय गंगा गीता ।
सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता ।।
ऋग्, यजु, साम, अर्थव, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे ।
कुण्डलिनी सहस्त्रार, सुषुम्ना, शोभा गुण गरिमे ।।
स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रहाणी, राधा, रुद्राणी ।
जय सतरुपा, वाणी, विघा, कमला, कल्याणी ।।
जननी हम है दीन, हीन, दुःख, दारिद के घेरे ।
यदपि कुटिल, कपटी कपूत, तऊ बालक है तेरे ।।
स्नेहसनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै ।
बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै ।।
काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव, द्घेष हरिये ।
शुद्घ बुद्घि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ।।
तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता ।
सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता ।।
जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।।
आरती समाप्त होने पर साष्टांग नमस्कार
ऊँ नमोडस्त्वनन्ताय
सहस्त्रमूर्तये, सहम्त्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्त्रनाम्ने
पुरुषा शाश्वते, सहस्त्रकोटी युगधारिणे नमः ।।
आरती बजरंगबली की
आरती कीजै हनुमान लला की । दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।
जाके बल से गिरिवर कांपै । रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।
अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए । लंका जारि सिया सुधि लाये ।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई । जात पवनसुत बार न लाई ।।
लंका जारि असुर सब मारे । सियाराम जी के काज संवारे ।।
लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे । लाय संजीवन प्राण उबारे ।।
पैठि पताल तोरि जमकारे । अहिरावण की भुजा उखारे ।।
बाईं भुजा असुर संहारे । दाईं भुजा संत जन तारे ।।
सुर नर मुनि आरती उतारें । जय जय जय हनुमान उचारें ।।
कंचन थार कपूर लौ छाई । आरति करत अंजना माई ।।
जो हनुमान जी की आरती गावे । बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।
लंक विध्वंस किए रघुराई । तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।।
आरती श्री सरस्वती जी की
आरती करुं सरस्वती मातु, हमारी हो भव भय हारी हो ।
हंस वाहन पदमासन तेरा, शुभ्र वस्त्र अनुपम है तेरा,
रावन का मन कैसे फेरा, वर मांगत बन गया सवेरा,
यह सब कृपा तिहारी हो, उपकारी हो मातु हमारी हो ।
तमोज्ञान नाशक तुम रवि हो, हम अम्बुजन विकास करती हो,
मंगल भवन मातु सरस्वती हो, बहुमूकन वाचाल करती हो,
विघा देने वाली, वीणा धारी हो, मातु हमारी हो ।
तुम्हारी कृपा गणनायक, लायक विष्णु भये जग के पालक,
अम्बा कहायी सृष्टि ही कारण, भये शम्भु संसार ही घालक,
बन्दौं आदि भवानी जग, सुखकारी हो मातु हमारी हो ।
सदबुद्घि विघा बल मोहि दीजै, तुम अज्ञान हटा रख लीजै,
जन्मभूमि हित अर्पण कीजे, कर्मवीर भस्महिं कर दीजै,
ऐसी विनय हमारी, भवभय हारी हो, मातु हमारी हो ।।
आरती श्री शनिदेव जी की
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हिकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ।। जय ।।
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नालाम्बर धार नाथ गज की अवसारी ।। जय ।।
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ।। जय ।।
मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ।। जय ।।
दे दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ।। जय ।।
आरती श्री विन्ध्येश्वरी देवी की
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनि, तेरा पार न पाया ।। टेक
पान सुपारी ध्वजा नारियल, लेतेरी भेंट चढ़ाया ।। सुन 0
सुवा चोली तेरे अंग विराजै, केसर तिलक लगाया ।। सुन 0
नंगे पग अकबर आया, सोने का छत्र चढ़ाया ।। सुन 0
ऊंचे पर्वत भयो देवालय, नीचे शहर बसाया ।। सुन 0
सतयुग, त्रेता द्घापर मध्ये, कलियुग राज सवाया ।। सुन 0
धूप दीप नैवेघ आरती, मोहन भोग लगाया ।। सुन 0
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावै, मनवांछित फल पावैं ।। सुन 0
आरती श्री लक्ष्मी जी की
जय लक्ष्मी माता, ऊँ जय लक्ष्मी माता । तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता ।। टेक ।।
ब्रहमाणी रुद्राणी कमला तू ही है जगमाता । सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता ।। जय 0 ।।
दुर्गा रुप निरंजन सुख सम्पत्ति दाता । जो कोई तुमको ध्याता ऋद्घि सिद्घि पाता ।। जय 0 ।।
तू ही है पाताल बसंती, तू ही शुभ दाता । कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि की त्राता ।। जय 0 ।।
जिस घर थारो बासा ताहि में गुण आता । कर न सके सोई कर ले मन नहिं धड़काता ।। जय 0 ।।
तुम बिन यज्ञ न होवे वस्त्र न कोई पाता । खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।। जय 0 ।।
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता । रत्न चतुर्दश ताको कोई नहीं पाता ।। जय 0 ।।
श्री लक्ष्मी जी की आरती जो कोई नर गाता । उर आनन्द अति उपजे पाप उतर जाता ।। जय 0 ।।
स्थिर चर जगत रचाये शुभ कर्म नर लाता । तेरा भक्त मैया की शुभ दृष्टि चाहता ।। जय 0 ।।
आरती श्री रामचन्द्र जी की
जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।।
भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरति संत करें दिन राती ।।
आनन्द की सरिता उभरी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
कनक सिंघासन सिया समेता । बैठहिं राम होइ चित चेता ।।
वाम भाग में जनक लली है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
आरति हनुमत के मन भावै । राम कथा नित शंकर गावै ।।
सन्तों की ये भीड़ लगी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।
आरती श्री भैरव जी की
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ।। जय ।।
तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ।। जय ।।
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ।। जय ।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ।। जय ।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी ।
कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी ।। जय ।।
पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत ।
बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ।। जय ।।
बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ।। जय ।।
आरती श्री दुर्गा जी की
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रहृ शिवरी ।। टेक ।।
मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को ।
उज्जवल से दोउ नैना चन्द्रबदन नीको ।। जय 0
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ।
रक्त पुष्प गलमाला कण्ठन पर साजै ।। जय0
केहरि वाहन राजत खड़ग खप्परधारी ।
सुर नर मुनिजन सेवक तिनके दुखहारी ।। जय 0
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति ।। जय 0
शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती ।। जय 0
चण्ड मुण्ड संघारे शोणित बीज हरे ।
मधुकैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे ।। जय 0
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी ।। जय 0
चौसठ योगिनी गावत नृत्य करत भैरुं ।
बाजत ताल मृदंगा अरु बाजत डमरु ।। जय 0
तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता ।
संतन की दुखहर्ता सुख सम्पत्तिकर्ता ।। जय 0
भुजा चार अति शोभित खड़ग खप्परधारी ।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ।। जय 0
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योत ।। जय 0
श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ।। जय 0
आरती श्री कृष्ण जी की
ओडम् जय श्रीकृष्ण हरे, प्रभु जय श्रीकृष्ण हरे ।
भक्तजनन के दुक सारे पल में दूर करे ।
परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी ।
जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी ।
कर कंकन कटि सोहत कानन में बाला ।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ।
दीन सुदामा तारे दरिद्रों के दुख टारे ।
गज के फन्द छुड़ाए भवसागर तारे ।
हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे ।
पाहन से प्रभु प्रगटे जम के बीच परे ।
केशी कंस विदारे नल कूबर तारे ।
दामोदर छवि सुन्दर भगतन के प्यारे ।
काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे ।
फन-फन नाचा करते नागन मन मोहे ।
राज्य उग्रसेन पायो माता शोक हरे ।
द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे ।
ओडम् जय श्रीकृष्ण हरे ।
आरती (2)
आरती युगल किशोर की कीजै ।
आरती युगल किशोर की कीजै । राधे तन मन धन न्यौछावर कीजै ।।
रवि शशि कोटि बदन की शोभा । ताहि निरख मेरो मन लोभा ।।
गौर श्याम मुख निरखत रीझै । प्रभु को रुप नय भर पीजै ।।
कंचन थार कपूर की बाती । हरि आए निर्मल भई छाती ।।
फूलन की सेज फूलन की माला । रत्न सिंहासन बैठे नन्दलाला ।।
मोर मुकुट कर मुरली सोहे । कुंज बिहारी गिरिवर धारी ।।
श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी । आरति करत सकल ब्रज नारी ।।
नंदनंदन वृषभानु किशोरी । परमानन्द स्वामि अविचल जोरी ।।
ओम जय जगदीश हरे
'''ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे'''
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे .
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे ..
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का .
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ..
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी .
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी ..
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी .
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी ..
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता .
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता ..
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति .
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति ..
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे .
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे ..
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा .
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ..
आरती श्री गणेश जी की
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।।
एकदन्त दयावन्त चार भुजाधारी ।
मस्तक पर सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ।। जय 0
अन्धन को आंख देत कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया ।। जय 0
पान चढ़ै फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा ।
लडुअन का भोग लागे सन्त करें सेवा ।। जय 0
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी ।
कामना को पूरी करो जग बलिहारी ।। जय 0